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रविवार, 31 जनवरी 2016
गुमसुम सा ये शमाँ क्यों है
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गुमसुम सा ये शमाँ क्यों है, लफ्जों में धूल जमा क्यों है, आलम खामोशी का कुछ कह रहा, अपनी धुन में सब रमा क्यों है.. डफली अपनी, अपन...
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शुक्रवार, 27 जनवरी 2012
एहसास तेरा
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ढुँढती है नजरें तुझे हर दिन और हर रात, आईने में नजरें अब तो तुझे तलाशती है । आहट तेरी करार है लेती अब तो हर हर एक पल, भँवरों की ...
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शुक्रवार, 2 सितंबर 2011
जज़्बात-ए-ईश्क
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कुछ सुन लो या कुछ सुना दो मुझको, गुमसुम रहकर न यूँ सजा दो मुझको, जान से भी प्यारी है तेरी ये मुस्कुराहट, मुस्कुरा कर थोड़ा सा ...
2 टिप्पणियां:
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