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शनिवार, 8 मार्च 2025

कबूतर को दाना 


 खिलाते जो हम हैं कबूतर को जाना 

एक दिन हमारे दिल ने यह जाना 

हम जो ये सारा करम कर रहे हैं 

जिसे सोचते हम धरम कर रहे हैं 

धर्म ऐसा कैसा कमा हम रहे हैं 

सभी को निठल्ला बना हम रहे हैं 

जिन्हें पेट भरने ,कमाने को दाना 

सवेरे को उड़कर के पड़ता था जाना

उन्हें पास मिल जाता है ढेरों दाना 

मुटिया रहे जिसको खा वो रोजाना 

खिलाने का दाना,करम आपका यह 

धर्म का नहीं है, करम पाप का यह

हुए जा रहे हैं आलसी सब कबूतर 

फैला रहे गंदगी घर-घर जाकर

मानो न मानो मगर सच यही है

इनकी नस्ल आलसी हो रही है


मदन मोहन बाहेती घोटू

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