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बुधवार, 26 मार्च 2025
मंगलवार, 25 मार्च 2025
सोमवार, 24 मार्च 2025
मुक्तक 1 नहीं कुछ हाथ लगना है, तो गम खाने से क्या होगा जहां ना दाल गलनी है ,वहां जाने से क्या होगा यही वह सोच है जो रोकती है, हमको पाने से, चुग गई खेत जब चिड़िया, तो पछताने से क्या होगा 2 सकेगा रोक ना कोई ,लिखा होगा जो किस्मत में परेशान व्यर्थ होते हो, किसी की यूं ही चाहत में अगर जो ना मिला कोई, तुम्हें जीते जी दुनिया में तुम्हारी चाह,बन कर हूर, मिल जाएगी जन्नत में 3 जवानी जब ढलेगी तो , बुढ़�
रविवार, 23 मार्च 2025
शुक्रवार, 21 मार्च 2025
जिंदगी का सफर
1
हमारी जिंदगानी में मुसीबत आनी जितनी है
न तेरी है ना मेरी है, हमारी है वो अपनी है
हमें मिलजुल के करना सामना है उनसे लड़ना है,
तभी यह जिंदगानी शान से अपनी गुजरनी है
2
कठिन पथ जिंदगी का है हमें जिससे गुजरना है
मिला कर कंधे से कंधा ,हमेशा साथ चलना है
ना तो मतभेद हो कोई,नहीं मनभेद हो कोई,
बदल कर एक दूजे को, एक सांचे में ढलना है
3
तभी हम काट पाएंगे,विकट जीवन, कठिन पथ को
रहेंगे जो सभी से मिल, बना रखेंगे इज्जत को
किसी की भावना को,ठेस ना पहुंचाएंगे हम ,
लगेगी ना नजर कोई की अपनी इस मोहब्बत को
मदन मोहन बाहेती घोटू
गुरुवार, 20 मार्च 2025
दिव्यन की शादी
1
इधर देखूं ,उधर देखूं , है रौनक मैं जिधर देखूं
झील सुंदर में रैफल है,थाम कर मैं जिगर देखूं
सजावट शादी मंडप की,महकते फूल खुशबू से
बहारें ही बहारें हैं ,मैं जो मन चाहे उधर देखूं
2
बताएं क्या तुम्हें रौनक, वो शादी के नजारों की
सजे सब फूल गुलशन के, ओढ़नी ओढ़ तारों की
सभी सजधज के हंसते नाचते और चुस्कियांलेते
बड़ा ही खुशनुमा माहौल था,महफिल बहारों की
3
बड़ा ही जोश है उत्साह है और चाव है मन में
अनुष्का और दिव्यन बंध रहे हैं प्यार बंधन में
बनाई ब्रह्मा जी ने अपने हाथों उनकी यह जोड़ी,
दुआ है लहलहाएं,मुस्कुराए, सदा जीवन में
मदन मोहन बाहेती घोटू
1
इधर देखूं ,उधर देखूं , है रौनक मैं जिधर देखूं झील सुंदर में रैफल है,थाम कर मैं जिगर देखूं सजावट शादी मंडप की,महकते फूल खुशबू से बहारें ही बहारें हैं ,मैं जो मन चाहे उधर देखूं
2
बताएं क्या तुम्हें रौनक, वो शादी के नजारों की सजे सब फूल गुलशन के, ओढ़नी ओढ़ तारों की सभी सजधज के हंसते नाचते और चुस्कियांलेते बड़ा ही खुशनुमा माहौल था,महफिल बहारों की
3
बड़ा ही जोश है उत्साह है और चाव है मन में अनुष्का और दिव्यन बंध रहे हैं प्यार बंधन में बनाई ब्रह्मा जी ने अपने हाथों उनकी यह जोड़ी,
दुआ है लहलहाएं,मुस्कुराए, सदा जीवन में
मदन मोहन बाहेती घोटू
शुक्रवार, 14 मार्च 2025
रविवार, 9 मार्च 2025
शनिवार, 8 मार्च 2025
कबूतर को दाना
खिलाते जो हम हैं कबूतर को जाना
एक दिन हमारे दिल ने यह जाना
हम जो ये सारा करम कर रहे हैं
जिसे सोचते हम धरम कर रहे हैं
धर्म ऐसा कैसा कमा हम रहे हैं
सभी को निठल्ला बना हम रहे हैं
जिन्हें पेट भरने ,कमाने को दाना
सवेरे को उड़कर के पड़ता था जाना
उन्हें पास मिल जाता है ढेरों दाना
मुटिया रहे जिसको खा वो रोजाना
खिलाने का दाना,करम आपका यह
धर्म का नहीं है, करम पाप का यह
हुए जा रहे हैं आलसी सब कबूतर
फैला रहे गंदगी घर-घर जाकर
मानो न मानो मगर सच यही है
इनकी नस्ल आलसी हो रही है
मदन मोहन बाहेती घोटू