पृष्ठ

सोमवार, 18 मार्च 2024

मैं फिट हूं 


उमर बयांसी पार हो गई ,

मैंने खुद को फिट रक्खा है 

फिर भी कुछ ना कुछ तकलीफें ,

हो जाती  इक्का दुक्का है 


उम्र जन्य सारी बीमारी ,

सबको होती, मुझको भी है 

अब चलने पर घुटने भारी 

सबके होते, मेरे भी हैं 

थोड़ा ऊंचा भी सुनता हूं 

आंखों में है धुंधलापन भी 

याददाश्त भी साथ में देती

हाथ पांव में बचा न दम भी 

लेकिन मैंने कमजोरी को ,

लोगों के आगे ढक्का है 

उमर बयांसी पार हो गई ,

मैंने खुद को फिट रक्खा है 


मंद हो गई पाचन शक्ति 

और भूख भी लगती कम है 

ज्यादा चललो ,सांस फूलती 

कमजोरी का यह आलम है 

काम धाम ना कुछ करने को 

डूबा रहता हूं आलस में 

ज्यादा कोई परिश्रम करना 

रहा नहीं अब मेरे बस में 

चुस्ती फुर्ती सभी खो गई 

तन रहता थक्का थक्का है 

उम्र बयांसी पार हो गई 

मैंने खुद को फिट रक्खा है 


हुई भूलने की बिमारी,

याद न रहते नाम किसी के 

याद मगर आते रहते हैं 

यौवन के दिन हंसी खुशी के 

बच्चे मेरी बात न सुनते 

घर में मेरी ना चलती है 

मैं मिठाई का प्रेमी लेकिन

खान-पान पर पाबंदी है 

फिर भी मैंने पकवानों को 

चुपके चुपके से चख्खा है 

उम्र बयांसी पार हो गई 

मैंने खुद को फिट रक्खा है


मदन मोहन बाहेती घोटू

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।