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बुधवार, 3 जनवरी 2024

उड़ी उड़ी नींद


पुरानी स्मृतियां ,

जब सपन बन ,

मन से जुड़ सी गई 

नींद ,कुछ उड़ सी गई 


बीते बरस की,

यादों का कोहरा 

जब छटने लगा 

प्राची में ,

नए वर्ष का सूरज 

दमकने लगा 

नई-नई आशायें 

मन में 

उमड़ सी गई 

नींद, कुछ उड़ सी गई 


चटकती कलियों का  

पाकर के 

प्रेम भरा निमंत्रण 

तितलियां उड़ने लगी,

उत्साहित भ्रमरों का 

शुरू हो गया गुंजन 

मिलन की संभावनाएं 

थोड़ी बढ़ सी गई 

नींद कुछ उड़ सी गई


मदन मोहन बाहेती घोटू

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