पृष्ठ

बुधवार, 1 नवंबर 2023

एक शेर : हो गया ढेर


हां मैं  कभी शेर था 

सब पर सवा सेर था 

रौबीला ,जोशीला ,जवानी से भरपूर था अपनी ताकत के नशे में चूर था 

गर्व से दहाड़ा करता था 

हर कोई मुझसे  डरता था 

फिर एक दिन में एक चंचल हिरणिया 

के चक्कर में पड़ गया 

उसके प्यार का भूत मेरे सर पर चढ़ गया मैं उसकी प्यारी आंखों का हो गया दीवाना वह बन गई मेरी जाने जाना 

मुझे उस हो गया उससे प्यार 

उसकी अदाओं ने ,कर लिया मेरा शिकार 

मेरा सारा शेरत्व हो गया गुम 

मैं उसके आगे हिलाने लगा दुम 


और फिर जब पड़ा गृहस्थी का बोझ 

मैं नौकरी पर जाने लगा रोज 

पर वहां मेरा बॉस था एक गधा 

मुझ पर रौब डालता था  था सदा 

कई बार गुस्सा तो इतना आता था कि  झपट्टा मार कर उसे खा जाऊं 

पर मैं उसका मातहत था ,

उसके आगे करता था म्याऊं म्याऊं 

हालत में मुझे कहां से कहां ला दिया था एक शेर को बिल्ली बना दिया था 


फिर मेरे घर जन्मे दो प्यारे बच्चे

कोमल मुलायम खरगोश की तरह अच्छेे

वे मेरे मन को बहुत भाते थे 

मेरे साथ खेलते थे ,

कभी गोदी में कभी सर पर चढ़ जाते थे 

मैं उनको पीठ पर बिठा कर घुमाता था अपने प्यारे प्यारे खरगोशों के लिए 

मैं घोड़ा बन जाता था 


फिर एक दिन में हो गया रिटायर 

और धीरे धीरे बन गया एकदम कायर

मेरे अंदर का बचा कुछ शेर 

धीरे-धीरे हो गया ढेर

हर शहर का शायद यही होता हैअंत 

कि बुढ़ापे में वह बन जाता है संत 


मदन मोहन बाहेती घोटू

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।