पृष्ठ

बुधवार, 15 मार्च 2023

झुक गया इंसान

जमाने भर के बोझे ने,कमर मेरी झुका दी है ,
और झुकने को मत बोलो, नहीं तो टूट जाऊंगा 
दुखी है मन मेरा कहता ,सताया और जो मुझको,
 तुम्हारा चैन,सुख खुशियां ,सभी कुछ लूट जाऊंगा

 झुकी नजर तुम्हारी थी, तुम्हारा रूप मस्ताना झुका था में तुम्हारी आशिकी में होकर दीवाना 
तुम्हें पाने की हसरत में किए समझोते झुक झुक कर 
न था मालूम जीवन भर ,पड़ेगा झुक के पछताना 
मेरी दीवानगी का फायदा तुम भी ले रही इतना 
सब्र का बांध कहता है, बस करो ,टूट जाऊगा
जमाने भर के बोझे ने , कमर मेरी झुका दी है,
और झुकने को मत बोलो, नहीं तो टूट जाऊंगा

 मेरे दाएं, मेरे बाएं ,मुसीबत ढेर सारी है 
 परेशां मन कभी रहता, कभी कोई बीमारी है  सुकूं से जी नहीं पाता, कभी भी एक पल दो पल
 तुम्हारी जी हजूरी में ,बिता दी उम्र सारी है बहुत गुबार,गुब्बारे में, दिल के हैं शिकायत का,
 हवा इसमें भरो मत तुम, नहीं तो फूट जाऊंगा
 जमाने भर के बोझे ने कमर मेरी झुका दी है ,
 और झुकने को मत बोलो, नहीं तो टूट जाऊंगा

मदन मोहन बाहेती घोटू 

1 टिप्पणी:

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।