पृष्ठ

सोमवार, 3 अक्टूबर 2022

 तुम मुझको अच्छे लगते हो 
 
तुम जो भी हो जैसे भी हो ,
पर मुझको अच्छे लगते हो 
जो बाहर है, वो ही अंदर ,
मन के तुम सच्चे लगते हो 

रखते नहीं बैर कोई से ,
नहीं किसी के प्रति जलन है 
करता मन के भाव प्रदर्शित ,
शीशे जैसा निर्मल मन है 
मुंह में राम बगल में छुरी ,
जैसी बुरी नहीं है आदत 
तुम्हारे व्यवहार वचन में,
 टपका करती सदा शराफत 
 सीधे सादे, भोले भाले ,
 निश्चल से बच्चे लगते हो 
 तुम जो भी हो जैसे भी हो 
 पर मुझको अच्छे लगते हो 
 
ना है कपट ,नहीं है लालच ,
और किसी से द्वेष नहीं है 
सदा मुस्कुराते रहते हो ,
मन में कोई क्लेश नहीं है 
ना ऊधो से कुछ लेना है ,
ना माधव को ,है कुछ देना 
रहते हो संतुष्ट हमेशा 
खाकर अपना चना चबेना 
बहुत सुखी हो, दुनियादारी 
में थोड़े कच्चे लगते हो 
तुम जो भी हो जैसे भी हो ,
पर मुझको अच्छे लगते हो

मदन मोहन बाहेती घोटू 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।