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रविवार, 10 अप्रैल 2022

कान 

चेहरे के दाएं या बाएं 
अगर आप नजर घुमाएं
तो दो अजीब आकृति के छिद्रयुक्त अंग नज़र आते हैं 
जो कान कहलाते हैं 
यह हमारी श्रवण शक्ति के मुख्य साधन है 
जिससे एक दूसरे की बात सुन पाते हम हैं 
यह कान भी अजीब अंग दिया इंसान में है 
हर जगह मौजूद रहते इस जहान में हैं 
वो आपके मकान में हैं 
उपस्थित दुकान में है 
काम करो तो थकान में है 
खुश रहो तो मुस्कान में हैं 
आदमी के ही नहीं दीवारों के भी कान होते हैं 
कोई कान के कच्चे श्रीमान होते हैं
हमें कानो कान खबर नहीं लगती और लोग हमारे विरुद्ध दूसरों के कान भरते हैं 
कोई कान कतरते है 
कोई कान में तेल डालकर बातों को अनसुना करते हैं 
जब हम सतर्क होते हैं हमारे कान खड़े हो जाते हैं कोई बकवास करके हमारे कान पकाते हैं 
कान सा कॉम्प्लिकेटेड आकार का शरीर का कोई अंग नहीं दिखता है
कहते हैं कान का हर पॉइंट शरीर के किसी अंग को कंट्रोल करता है 
कान का सही उपयोग सुनने के लिए होता है पर औरते जो कभी किसी की नहीं सुनती है 
अपने श्रृंगार के लिए कानों को चुनती हैं 
कभी कानों में बाली डालती है 
कभी झुमका लटकाती है 
कभी हीरे के टॉप्स से कानों को सजाती है 
कोरोना की बीमारी में भी कान बहुत काम आए हर कोई रहता था कान से मास्क लटकाए 
मंद दृष्टि वालो को दूरदृष्टि देने वाला चश्मा जिससे साफ दिखता है 
वह भी कानों के सहारे ही टिकता है 
कुछ बातों की किसी को नही होती
 कानोकान खबर है
 ये शरीर का एकमात्र अंग है 
 जिसके नाम पर बसा कानपुर नगर है 
 बचपन में जब स्कूल में पढ़ते थे 
मास्टर जी बहुत ज्ञान की बातें हमारे कानों में भरते थे 
पर हमारे कानों पर जूं नहीं रेंग पाती थी 
इस कान से सुनी बातें उस कान से निकल जाती थी 
और इसकी सजा में हमारे काम उमेंठे जाते थे कभी कान पकड़ कर उठक बैठक लगाते थे 
इस पर भी बात नहीं बनती तो कान पकड़कर मुर्गा बना दिए जाते थे 
तरह-तरह की सजाएं पाते थे 
तब तो हम खिसिया कर पल्लू झाड़ कर खड़े हो जाते थे 
क्योंकि हमारे कई सहपाठी अक्सर ऐसी सजा पाते थे 
पर एक प्रश्न दिमाग में जरूर मचाता था तूफान की सजा देते समय मास्टर जी क्यों मरोड़तें हैं हमेशा कान 
लेकिन इसका उत्तर अब समझ पाए हम है 
कान का मस्तिष्क की ज्ञान तंत्रिका से सीधा कनेक्शन है
कान मरोड़ने से ज्ञान तंत्रिका जागृत हो जाती है ऐसी सजा से अच्छी बुद्धि आती है 
कुछ भी हो अगर कान नहीं होते तो आपस में कम्युनिकेशन नहीं हो पाता 
न सत्संग हो पाता ,ना भजन हो पाता  
इसलिए श्रीमान 
मेरी बात सुनिए खोल कर कान
कान है महान 
गुणों की खान 
आपके चेहरे पर लाते है मुस्कान 
आपस में कानाफूंसी न कर 
ऐसी बातें बोलें
जो लोगों के कानो में मिश्री घोले

मदन मोहन बाहेती घोटू

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