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सोमवार, 26 जुलाई 2021

बूढ़े बुढ़िया , लिव इन रिलेशन 

मैं कुछ कहता,वो ना सुनती, 
वो कुछ कहती ,मैं ना सुनता 
एक दूसरे को आपस में ,यूं ही सहते हैं 
लिव इन रिलेशन में हम बुड्ढे बुढ़िया रहते हैं 

है थोड़ी कमजोर न, ज्यादा चल फिर पाती है 
काम जरा सा कर लेती है, तो थक जाती है 
मैं कितना भी कुछ बोलो तो चुप चुप रहती है ,
बात समझ में ना आती तो भी मुस्कुराती है 
मैं खासूं, वह दवा खिलाए 
वह खांसे,मैं दवा पिलाऊं ,
ख्याल एक दूजे का ,ऐसे रखते रहते हैं 
लिव इन रिलेशन में हम बुड्ढे बुढ़िया रहते है

उसकी धुंधलाई आंखों की चमक निराली है 
झुर्राए है गाल ,अभी भी उन में लाली है 
कभी प्यार से शरमा करके जब मुस्काती है ,
फूल खिलाती हंसी ,बहुत लगती मतवाली है 
अब भी मुझको बहुत सताती 
याद जवानी की दिलवाती 
कभी पुरानी यादों के जब झरने में बहते हैं 
 लिव इन रिलेशन में हम बुड्ढे बुढ़िया रहते है
 
मेरा सर दुखता तो उससे मैं दबवाता हूं ,
उसे पीठ में खुजली होती, मैं खुजलाता हूं 
बढ़े हुए नाखून ,एक दूजे के पांव के,
उसके मैं काटूं,अपने, उससे करवाता हूं 
रोज यहीं होता कुछ-कुछ है 
जब तक संग है ,हम खुश खुश हैं
 ख्याल बिछड़ने का आता ,तो आंसू बहते हैं 
 लिव इन रिलेशन में हम बुड्ढे बुढ़िया रहते है


मदन मोहन बाहेती घोटू

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