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मंगलवार, 20 जुलाई 2021

रिमझिम और रोमांस 

जैसे ही नभ में छाते हैं बादल थोड़े 
चाह तुम्हारी होती है कि बने पकोड़े 
कैसे तुमको समझाऊं मैं साजन मोरे ,
चाय पकौड़े से आगे भी कुछ होता है 

हम बोले कि हमें पता, पर सकुचाते हैं 
अपने दिल की हसरत नहीं बता पाते हैं
 साथ पकोड़े के मिल जाए गरम जलेबी,
 या हो हलवा गरम गरम तो मन मोहता है 
 
पत्नी बोली जब देखो तब खाना पीना 
दिल तुम्हारा इससे ज्यादा कहे कभी ना 
रिमझिम वाले इस प्यारे प्यारे मौसम में ,
चलो जरा सा रोमांटिक भी हम हो जाए  

हमने बोला जी तो मेरा भी है करता 
ना होता रोमांस ,पेट जब तक ना भरता
आओ करें रोमांस, बदन में गर्मी लायें
इसीलिए हम पहले गरम-गरम कुछ खायें

मदन मोहन बाहेती घोटू

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