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शनिवार, 5 जून 2021

अपनी-अपनी किस्मत 

हरएक कपड़े के टुकड़े की होती किस्मत जुदा-जुदा है 
जो भी लिखा भाग्य में होता, वो ही मिलता उसे सदा है

एक वस्त्र की चाहत थी यह,कि बनकर एक सुंदर चादर  
नयेविवाहित जोड़े की वो,बिछे मिलन की शयनसेज पर 
पर बदकिस्मत था ,अर्थी में, मुर्दे के संग आज बंधा है 
हरएक कपड़े के टुकड़े की होती किस्मत जुदा-जुदा है

 एक चाहता था साड़ी बन, लिपटे किसी षोडशी तन पर
 किंतु रह गया वह बेचारा ,एक रुमाल छोटा सा बनकर 
 जिससे कोई सुंदरी पोंछे,अपना पसीना यदा-कदा है
 हर एक कपड़े के टुकड़े की, होती किस्मत जुदा-जुदा है
 
 एक चाहे था बने कंचुकी ,लिपट रहे यौवन धन  के संग 
बना पोतडा एक बच्चे का,सिसक रहा,बदला उसका रंग
कोई खुश है किसी घाव पर ,पट्टी बंद कर आज बंधा है 
हर एक कपड़े के टुकड़े की होती किस्मत जुदा-जुदा है

मदन मोहन बाहेती घोटू

1 टिप्पणी:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 06 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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