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शुक्रवार, 4 जून 2021

टीका टिप्पणी 

हर एक बात पर करना टीका टिप्पणी यह हमारी आदत है पुरानी 
क्योंकि कहते हैं इसे विद्वत्ता की  निशानी 
तो चलो आज भी ऐसा ही कुछ किया जाए 
टीके पर ही टिप्पणी की जाए
 बचपन से साथ रहा है ,टीके का और हमारा
 हमारी मां हमें हमे लगाती थी काजल का टीका,
  ताकि बुरी नजर से बच कर रहे उनका दुलारा
 पैदा होते ही नर्स ने हमें कई तरह के टीके लगवाये ताकि हम कई बीमारियों से बच पाए  
 बाद में बहन, भाई दूज, रक्षाबंधन पर हमारे मस्तक पर कंकू का टीका लगाती थी 
 बदले में उपहार पाती थी 
 फिर हम जब मंदिर में जाते थे 
 पंडित जी हमारे मस्तक पर चंदन का टीका लगाते थे बदले में दक्षिणा पाते थे 
 घर पर जब भी कोई पूजा हवन यह त्यौहार मनता था
  हमारे मस्तक पर टीका लगता था 
  फिर जब हमारी हुई सगाई 
  तो सबसे पहले टीके की रस्म गई थी निभाई 
  और जब हम घोड़ी पर चढ़कर 
  ससुराल गए थे दूल्हा बनकर 
  हमारी सास ने हमारे मस्तक पर टीका लगाकर अपना मतलब था साधा 
 और अपनी जिम्मेदारी का हाथ पकड़ा कर ,
 हमारे पल्ले था बांधा 
 और शादी के बाद पत्नी की फरमाईशों के आगे
 आज तक कोई  क्या कभी है टिका
 उसको चाहिए कभी सोने का नेकलेस ,
 कभी चाहिए मांग का टीका 
अलग-अलग पंथ के गुरु साधु और संत
अपने मस्तक पर अलग-अलग ढंग से टीका लगाते हैं और टीके से ही पहचाने जाते हैं
 हमारे बड़े बड़े ग्रंथ जैसे रामायण भागवत और गीता इनकी कितने ही साहित्यकारों रहे हैं लिखी है टीका टीका लगवा कर , अक्सर हमने कुछ तो कुछ दिया है या कुछ न कुछ पाया है 
 मगर एक टीका है ,जो हमको कोरोना से बचाने के लिए आया है
 और वह भी एक नहीं दो-दो टीके कुछ अंतर से लगवाने पड़ते हैं 
 जो कोरोना के वायरस से लड़ते हैं
  सच तो यह है कि टीके के बल पर 
  आज टिका इंसान है
  टीके की महिमा सचमुच महान है

मदन मोहन बाहेती घोटू

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