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पक ही जाती है इश्किया खिचड़ी...
चूल्हा यहाँ पर
पतीला वहाँ पर,
फिर भी पक ही
जाती है
'इश्किया खिचड़ी',
जिससे आ जाता है
जायका ज़िन्दगी में,
और लगती है चलने
जैसे कि फिसली...
एक का चावल
दूसरे की दाल,
मुलाक़ात हो तो
तड़का कमाल...
कभी आ ही जाती है
बातों में मिर्ची,
कभी हो ही जाती हैं
नज़रें भी तिरछी...
कुछ खोजते हैं तब
तोहफ़े की लस्सी,
तो कुछ ढूंढते
आत्महत्या की रस्सी...
- विशाल चर्चित
सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंगजब !
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन।