पृष्ठ

रविवार, 3 जनवरी 2021

चलती है

नहीं है पैर ,नहीं सर है नहीं काया है
मगर कुदरत ने उसे इस तरह बनाया है
कभी हलकी है ,कभी तेज, हवा चलती है
दिखाई देती नहीं ,मगर चला करती है

बड़ी नाजुक है जिससे स्वाद हम चखा करते
जिसपे बत्तीस चौकीदार ,नज़र रखा करते
कोई न रोक पाता ,जब जुबान चलती है
एक स्थान पर रहती है मगर चलती है

एक जगह टिकती नहीं ,होती है बड़ी चंचल
देखती ही सदा रहती है इधर और उधर
चलाती तीर भी है ,खुद भी मगर चलती है
बड़ी ही कातिल हुआ करती ,नज़र चलती है

रौब साहब का बहुत चला करता ,दफ्तर में
मामला उल्टा ,मगर हुआ करता है घर में
कोई भी मसला हो बीबी की बात चलती है
साहब चुप रहते है ,बीबी की सदा चलती है

वक़्त अच्छा बुरा ,आता है चला जाता है
बदलता रहता है ,रोता है कभी  गाता है
चाल तारों की, पर तक़दीर को बदलती है
नज़र आती नहीं किस्मत जो चाल चलती है

घोटू 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।