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शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

भूलने की बिमारी

बुढ़ापे में मुश्किल ये भारी हुई है
 मुझे भूलने की , बिमारी  हुई  है

रखूँ कुछ कहीं पर ,नहीं याद रहता
परेशां हो ढूँढूं ,किसी से न कहता
चश्मा कहीं पर भी रख भूल जाता
दवाई की गोली ,न टाइम से खाता
नहीं नाम लोगों के ,अब याद रहते
बिगड़े बहुत ही , है हालात रहते
बड़ी ही फ़जीयत  हमारी हुई है
मुझे भूलने की,  बिमारी हुई है  

नहीं याद रहती ,मुझे बात कल की
मगर याद ताज़ा ,कई बीते पल की
बचपन के दिन ,वो शरारत की बातें
जवानी के किस्से ,वो मस्ती की  रातें
वो भाई बहन संग ,लड़ना ,झगड़ना
वो माता की ममता ,पिताजी से डरना
वो जीवन्त ,सारी की सारी हुई है
मुझे भूलने की ,बिमारी  हुई   है  

अब जब सफ़र कट गया जिंदगी का  
संग याद आता है ,बिछड़े सभी का
हरेक दोस्त मुश्किल में जो काम आया  
 उन्हें  भूल कर भी ,भुला  मैं  न पाया  
नाम अब प्रभु का ,सुमरने  लगा हूँ
मोह माया से  अब  ,उबरने लगा  हूँ  
अंतिम सफर की ,तैयारी  हुई है
 मुझे भूलने की, बिमारी हुई है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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