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शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2020

बुढ़ापा आने का अहसास

घट रही उमर सांस दर सांस
जवानी  जाने का अहसास
बुढ़ापा आता दिखता पास
दुखी मन रहता बड़ा उदास

उमर भर करता है जुट काम
मेहनत  कर, पिसता  इंसान
जमा होते जब तक कुछ दाम
सिमटने लगते सब अरमान

दगा जब देने लगे उमंग
जोश भी तजे तुम्हारा संग
बदल जाये जीने का ढंग
पुरानी याद करे आ तंग

चहकनेवाला मन, ग़मगीन
लिया है चैन किसी  ने छीन
दिनबदिन बदन हो रहा क्षीण  
गए वो दिन ,जो थे रंगीन

बिमारी कई हमें तड़फाय
नहीं हम कर पाते एन्जॉय
वक़्त की ऐसी लगती हाय
आदमी हो जाता असहाय

नहीं मस्ती ना कोई मौज
अभी भी मन में है संकोच
पुरानी दकियानूसी  सोच
जिंदगी लगने लगती बोझ

छूटती ना माया ,ना मोह
जिंदगी का आता अवरोह
सदा मन में ये उहापोह
सभी से होगा शीध्र विछोह

देखते रहो दिनों का फेर
लिया है चिंताओं ने घेर
मनाओगे तुम कब तक खैर
कब्र में लटक रहे है पैर

अभी तो  मियां बीबी साथ
कर लिया करते दिल की बात
किसी ने छोड़ दिया जो हाथ
बुरे होंगे कितने हालात

सोच ये काँपे हृदय उदास
कोई भी नहीं रहेगा पास
डसेगा तन्हाई का त्रास
ख़ुशी पर ग्रहण लगे खग्रास

इसलिए  मन कहता ,हँसबोल
हृदय की सभी ग्रंथियां खोल
बचा जो समय ,बहुत अनमोल
 मस्तियाँ  कर ले ,हंसी ,किलोल  

बात तू अपने दिल की मान
पूर्ण कर ले सारे अरमान
बचे है जब तक तन में प्राण
लूट ले ,जग की ख़ुशी तमाम

हरेक क्षण ,बचा जो तेरे पास
बिता संग हर्ष और उल्लास
मिटा ले मन की सभी भड़ास
बुढ़ापा समझ सुखद वनवास

खिले पुष्पों की मधुर सुवास
पंछियों का कलरव है पास
कभी है रिमझिम तो मधुमास
बुढ़ापा तुझे आएगा रास  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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