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रविवार, 6 सितंबर 2020

गुरुघंटालों के प्रति -शिक्षकदिवस पर

मैंने गुरु से सीखा जितना ,उतना गुरुघंटालों से
ढाई घर चलनेवाली ,उनकी शतरंजी चालों से

जीवनपथ पर जब निकला मैं ,था सीधासादा सच्चा  
पर लोगों को चुभता था यह,मैं क्यों हूँ इतना अच्छा
बार बार थे मुझे सताते राहों में अटका रोड़ा
ठोकर खा ,रोड़ों से बचना ,सीखा मैं थोड़ा थोड़ा
जब भी उनने,मुझे फंसाने,उलटी सीधी चाल चली
बच बाहर आने को मैंने ,ढूंढी पतली कोई गली
चुगलखोरियाँ ,चमचगिरियाँ,मख्खनबाजी ,मक्कारी
अपना स्वार्थ साधनेवाली ,चालबाजियां वो सारी
चाल शकुनि मामा जैसी,चलना फेंक गलत पासे
भ्र्ष्ट करे सबकी बुद्धि वह ,सीखा मंत्र ,मंथरा से
कब दे ढील ,खींचना डोरी ,और पतंग काट देना
भाई भाई के बीच दीवारें ,करके खड़ी ,बाँट देना
जितने गुरुघंटाल मिले ,थे इन खेलों में पारंगत
दावपेंच कुछ सीखा गयी ,हमको उनकी थोड़ी संगत
इन उलटी सीधी चालों का ,ज्ञान बहुत आवश्यक था
वरना उनके चक्रव्यूह से ,कोई भी ना बच सकता
सदगुरु ने था ज्ञान सिखाया ,अच्छी अच्छी शिक्षा दी
पर जीवन में कई बार जब आयी घडी परीक्षा की
सीधी ऊँगली ,घी ना निकला ,टेढ़ी की ,तब सका निकल
गुरुघंटालों की शिक्षा ने ,रस्ता मेरा ,किया सरल
सच का रस्ता ,अच्छा होता ,मगर बात ये भी सच्ची
अगर किसी का भला कर सके ,कभी झूंठ भी है अच्छी
टेढ़ा ज्ञान ,काम में ला ,मैं  निकला हूँ जंजालों से
मैंने गुरु से जितना सीखा ,उतना गुरुघंटालों से

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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