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गुरुवार, 24 सितंबर 2020

प्रतिबंधित जीवन

प्रतिबंधों के परिवेश में ,जीवन जीना बहुत कठिन है
बात बात में ,मजबूरी  के ,आंसूं पीना  बहुत कठिन है

रोज रोज पत्नीजी हमको ,देती रहती  सीख नयी है
इतना ज्यादा ,कंट्रोल भी ,पति पर रखना ठीक नहीं है
आसपास सुंदरता बिखरी ,अगर झांक लूं ,क्या बिगड़ेगा
नज़र मिलाऊँ ,नहीं किसी से ,मगर ताक लूं ,क्या बिगड़ेगा
पकती बिरयानी पड़ोस में ,खा न सकूं ,खुशबू तो ले लूं
सुन सकता क्या नहीं कमेंट्री ,खुद क्रिकेट मैच ना खेलूं
चमक रहा ,चंदा पूनम का ,कर दूँ उसकी अगर प्रशंसा
क्या इससे जाहिर होता है ,बिगड़ गयी है मेरी मंशा
खिले पुष्प ,खुशबू भी ना लूं ,बोलो ये कैसे मुमकिन है
प्रतिबंधों के परिवेश में ,घुट घुट जीना बहुत कठिन है

शायद तुमको डर तुम्हारे ,चंगुल से मैं निकल जाऊँगा
यदि ज्यादा कंट्रोल ना रखा  ,मैं हाथों से फिसल जाऊँगा
मुझे पता ,इस बढ़ी उमर में ,एक तुम्ही पालोगी मुझको
कोई नहीं जरा पूछेगा ,तुम्ही  घास डालोगी मुझको
खुले खेत में जा चरने की ,अगर इजाजत भी दे दोगी
मुझमे हिम्मत ना चरने की ,कई रोग का ,मैं हूँ रोगी
तरह तरह के पकवानो की ,महक भले ही ललचायेगी
मुझे पता ,मेरी थाली में ,घर की रोटी दाल आएगी
मांग रहा आजादी पंछी ,बंद पींजरे से  लेकिन है  
प्रतिबंधों के परिवेश में ,घुट घुट जीना बहुत कठिन है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ;

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