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सोमवार, 24 अगस्त 2020

एक तारा

 सूना सूना सा  जीवन था  ,मेरे मन की मीत  बनी तुम
तारा,तुम एकतारा बन कर ,जीवन का संगीत बनी तुम

मैं पतझड़ का सूखा तरु था ,तुम आयी तो विकसे किसलय
सुरभित हुआ हृदय का उपवन ,मेरे स्वर में आयी फिर लय
आहट  हुई मुस्कराहट की ,फिर से इन फीके  अधरों पर
फिर से मन उन्मुक्त गगन में ,लगा फड़फड़ाने ,अपने पर
हार गया मैं अपना सब कुछ ,ऐसी प्यारी जीत बनी तुम
तारा ,तुम एकतारा बन कर ,जीवन का संगीत बनी तुम

दग्ध हृदय को शीतलता दी ,और शीतल तन को दी ऊष्मा
अपना सारा प्यार उंढेला ,और  बरसा दी  तन की सुषमा
मुरझाई जीवन लतिका में ,नवजीवन संचार  हुआ फिर
एक दूजे को हुए समर्पित ,हम में इतना प्यार हुआ फिर
अब पल पल ,तुम्हारा संबल ,ऐसी जीवन रीत बनी तुम
तारा ,तुम एकतारा बन कर ,जीवन का संगीत बनी तुम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

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