पृष्ठ

सोमवार, 10 अगस्त 2020

ये लोग किसलिए जलते हैं

ये लोग किसलिए जलते है
इर्षा के मारे तिल तिल जल ,
मन ही मन बहुत उबलते है
ये लोग किसलिए जलते है

कोई जल कर होता उज्जवल ,
बन कर भभूत ,चढ़ता सर पर
कोई जल कर बनता काजल ,
नयनो में अंज, करता सुन्दर  
कोई जल कर दीपक जैसा ,
फैलता जग भर  में प्रकाश
तो कोई शमा जैसा जलता ,
परवानो का करता  विनाश
हो पास नहीं जिसका प्रियतम ,
वह विरह आग में जलता है
भोजन को पका ,पेट भरने ,
घर घर में चूल्हा जलता है
कोई औरों की प्रगति देख ,
जलभुन कर खाक हुआ करता
कोई  गुस्से में गाली दे ,
जल कर गुश्ताख हुआ करता
कोई की प्रेम प्रतीक्षा में ,
जलते आँखों के दीपक है
होते सपूत है जो बच्चे ,
वो कहलाते कुलदीपक है
मनता दशहरा,जला रावण ,
दीपावली  , दीप जलाते  है
होली पर जला होलिका को,
हम सब त्यौहार मनाते है
पूजा में दीप आरती में ,
करते जब हवन ,जले समिधा
माँ  के मंदिर में ज्योत जले ,
मातारानी, हरती दुविधा
जलना संस्कृति का अभिन्न अंग ,
काया जलती ,जब मरते है
ये लोग इसलिए जलते है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '         

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।