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बुधवार, 17 जून 2020

अलग अलग दुनिया

प्रभु ने रचा एक भूमण्डल ,माटी पत्थर ,जल भर कर
गोलमोल है,घूम रहा ,वो भी टेड़ा ,निज धुरी  पर
फैली कहीं घनी हरियाली ,और कहीं  है मरुस्थल
सर्दी गरमी ,बारिश सूखा ,चलता ऋतुओ का चक्कर
 खड़े पहाड़ और भरे समंदर ,नदियां ,नाले बहते है
ईश्वर की इस अनुपम कृति को हम सब दुनिया कहते है
ये सब तो है भौतिक दुनिया ,एक मानसिक है दुनिया
तेरी मेरी उसकी इसकी ,सबकी अलग अलग दुनिया
मेरी बीबी , घर बच्चे  है  ,यह मेरी अपनी दुनिया
तेरी बीबी , घर बच्चे  है  यह तेरी अपनी दुनिया
इतने ज्यादा आत्म केन्द्रित ,कि बस मैं ,मेरी मैना
सब अपनी दुनिया में सिमटे ,फिर दुनिया से क्या लेना
परिवार मेरा, मेरा घर ,मेरा पैसा , और  इज्जत
जाते भूल , जिंदगी जीने ,प्रभु की दुनिया आवश्यक
वो ही हमको  देती है जल  ,वृक्ष दे रहे ऑक्सीजन
खाने को फल ,धान्य दे रही  ,जिनसे चलता है जीवन
और बसाने अपनी दुनिया ,हम वृक्षों को काट रहे
रची प्रभु ने है जो दुनिया ,कर उसको बरबाद  रहे
ये मत भूलो ,जब तक ये दुनिया ,तब तक अपनी दुनिया
इस दुनिया का ख्याल रखो ,ये  तो  है हम सबकी दुनिया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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