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शनिवार, 2 मई 2020

कोरोना डर  क्या क्या भूले  



बहुत त्रसित और दुखी हो गए ,जीवन पद्धति बदल गयी ,

देखो क्या क्या  हम तुम और सब ,कोरोना डर भूल गए

लॉक डाउन ने ऐसा हमको ,घर के अंदर बंद किया ,

टी वी से चिपके रहते हम ,जाना बाहर  भूल गए

पहले गर्मी की छुट्टी  में , बच्चे नानी घर जाते थे  

कोरोना के कारण बंध कर  ,नानी का घर भूल गए


न तो चाट के ठेले लगते ,ना वो आलू की टिक्की ,

स्वाद गोलगप्पों का प्यारा ,पानी भर भर ,भूल गए

हलवाई की दुकानों से ,आये न खुशबू जलेबी की ,

वो गुलाब जामुन ,रसगुल्ले ,रबड़ी घेवर भूल गए

ना तो बाज़ारों में रौनक ,मॉल सभी सुनसान पड़े ,

पॉपकॉर्न पिक्चर हालों में ,खाना जी भर ,भूल गए

अब ना भीड़ भरे वो उत्सव ,शादी ब्याह बारातों में ,

छत्तीसों व्यंजन का खाना ,प्लेटें भर भर भूल गए

बच्चे मम्मी पापा सब मिल ,घर भर का सब काम करें ,

बात बात पर रौब दिखाना, तीखे तेवर भूल गए

लौट आये संस्कार ,नमस्ते, हाथ जोड़ अब करते है ,

दूरी रखते ,प्यार जताना ,अब झप्पी भर ,भूल गए

 खुद को  बहुत सूरमा समझे बैठे मार  मार मच्छर ,

आया कोरोना ,हम घर छुप कर ,लेना टक्कर भूल गए

ये सच है ,पॉल्यूशन कम है ,जल नदियों का शुद्ध हुआ ,

मुश्किल था जब लेना साँसें ,अब वो मंजर भूल गए



मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

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