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शनिवार, 16 मई 2020

कोरोना की उत्पत्ति -एक नया दृष्टिकोण

युग बीत गए,एक राक्षस ने ,शंकर जी का आराधन कर
था उनसे यह वर मांग लिया ,वह हाथ रखेगा जिसके सर
वह व्यक्ति भस्म हो जाएगा , ऐसा विचित्र सा वर  पाके
उस 'भस्मासुर 'से परेशान ,सब लोग हो गए  दुनिया के

वैसे दूजे एक राक्षस ने ,कर तप कुछ वर पाया ऐसा
एक रक्त बूँद उसकी जो गिरे ,राक्षस पैदा हो उस जैसा
जहाँ उसकी रक्त बूंदे गिरती ,कितने राक्षस पैदा करती
उस 'रक्त बीज 'राक्षस से डर ,आतंकित हुई ,हिली धरती

इन भस्मासुर और रक्तबीज ,राक्षस ने मिल ,एक रूप धरा
 वह इतना ज्यादा फ़ैल गया  ,सारी दुनिया में जा पसरा
इससे आतंकित और दुखी ,जग का हर कोना कोना है
जो फैला रहा मौत तांडव ,वह राक्षस यही कोरोना है

भस्मासुर सा छूने भर से  ,ये तन में आ जाता बस है
रक्तबीज की रक्त बूँद सा ,फ़ैल रहा ये वाइरस  है
इन दोनों का यह मिश्र रूप ,बन गया बहुत ही उत्पाती
लाखों के प्राण हरे इसने ,है बहुत त्रसित मानव जाति

हे भगवन करें प्रार्थना सब ,हम बहुत दुखी ,उपकार करो
धर कर के रूप मोहिनी का ,भस्मासुर का संहार  करो
तुम देवी काली रूप बनो और रक्तबीज का अंत  करो
है बहुत त्रसित ,निज भक्तों की ,रक्षा आकर भगवंत करो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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