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सोमवार, 25 मई 2020

पत्तल उठाते रह गये

सपन मन में मिलन के सब  कुलबुलाते रह गये
साथ आनेवाले थे वो ,आते आते  रह गये
हमारी मख्खन डली को ,एक कौवा ले गया ,
और हम अफ़सोस में ,दिल को जलाते रह गये
 कोई मंदिर में घुसा ,परशाद  सारा ले गया ,
और हम भक्ति भरे  ,घंटी बजाते रह गये
पेंच डाला कोई ने और हमारी काटी पतंग ,
बचाने को मांजा हम ,गिररी घुमाते रह गये
हमने रखवाली करी थी फसल की जी जान से
काट ली कोई ने ,हम भूसा उठाते  रह गये
मेहमां बन,लोग आये ,जीम कर सब,घर गये,
और भूखे पेट हम  ,पत्तल उठाते रह गये  

घोटू 

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