पृष्ठ

बुधवार, 29 अप्रैल 2020

बुहान के मेहमान से

ओ बुहान के मेहमान तुम कब जाओगे
देखो भाग जाओ वरना तुम पछताओगे
 
अतिथि का सत्कार हमारी परम्परा है ,
लेकिन इसने परेशानियां ,दर्द दिया है
इसके चलते ही मुगलों और अंग्रेजों ने ,
हमको लूटा मारा,हम पर राज किया है
ये सच है हम मेहमानो का स्वागत करते ,
उनकी सेवा आदर  में दिन रात लगाते
लेकिन अतिथि की भी कुछ मर्यादा होती ,
परेशान जो करता ,उसको लात लगाते
तुम अतिथि ना ,घर में घुसे ,आतयायी हो ,
सता रहे हो ,हम पर करके जबरजस्तियां
ऐसे हमलावर को है हम सीख सिखाते ,
उलटे पैर भगा दी हमने कई हस्तियां  
तुम घर में घुस ,घुसो गले में ,प्राण छीनलो
पता नहीं कब वेश बदल,किसके संगआओ
हमने इसीलिये सबसे दो गज की दूरी ,
बना रखी है ताक़ि हम तक पहुँच न पाओ
कर रख्खे है द्वार बंद मुख के भी हमने ,
ताला लगा लिया है मुंह पर मास्क पहन कर
काम धाम कर बंद लोग  घर  में है बैठे ,
ताकि तुम चोरी से घुसो न घर के अंदर
है सुनसान बज़ार ,देख सन्नाटा लौटो ,
 तुम्हे भगाने की करली है सब तैयारी
भागो वरना सेनेटाइजर ,मार मार कर ,
हालत बहुत बुरी हम देंगे बना तुम्हारी
देखो मान जाओ अब भी और भारत छोडो ,
 मोदी के मारे ,तुम सांस न ले पाओगे
बहुत हो गया, सीधे सच्चे ये बतलादो ,
कब छोड़ोगे पिंड ,पीठ कब दिखलाओगे

वादा करो कि वापस लौट नहीं आओगे
 ओ बुहान के मेहमान ,तुम कब आओगे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '


 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।