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मंगलवार, 17 मार्च 2020

बढ़ रही उमर के लक्षण  


बढ़ रही उमर के ये लक्षण
झुर्राया  तन ,झल्लाया  मन
अस्ताचल गामी ,प्रखर सूर्य ,
ढल रहा इस तरह है यौवन

थे कृष्ण कभी,अब श्वेत केश
कुछ हुए बिदा ,कुछ बचे शेष
था जीवन जो चटपटा कभी ,
अटपटा हुआ जाता हर क्षण
बढ़ रही उमर के ये लक्षण

विचरण करते स्वच्छंद कभी
अब हम पर है प्रतिबंध सभी
हो गयी देह है मधुमेही ,
और क्षीण दृष्टी हो गए नयन
बढ़ रही उमर के ये लक्षण

जिनने घर भर रख्खा संभाल
खुद को भी ना सकते संभाल
अब संभल संभल कर चलता है ,
तन कर के चलता था जो तन
बढ़ रही उमर के ये लक्षण

बच्चे खुश है निज नीड बसा
हम तड़फ रहे ,मन पीड़ बसा
हमने घिस घिस ,खुशबू बांटी ,
खुद  रहे काष्ठ ,कोरे  चन्दन
बढ़ रही उमर के ये लक्षण

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

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