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शनिवार, 15 फ़रवरी 2020

जुगाली

दुधारू पशु जिस तरह है घास खाते
बैठ कर के शांति से है पुनः चबाते
इस तरह की उनकी ये जीवन प्रणाली
आम भाषा में जिसे कहते  'जुगाली '
दूध में देती बदल है एक तृण को
हम भी अपनाये अगर इस आचरण को
काम जो दिन भर किये ,मन से ,वचन से
पूर्व सोने के विचारे ,शांत मन से
भला किसका किया और किसको दी गाली
अपने हर एक कर्म की करके जुगाली
आत्मआलोचक बने ,खुद को सुधारे
बहेगी जीवन में सुख की दुग्ध धारें

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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