पृष्ठ

मंगलवार, 26 नवंबर 2019

  आरजू -ढलती उम्र की

सीढ़ियां हमसे चढ़ी जाती नहीं ,
शौक़ है जन्नत की रौनक  देखलें
आँखें धुंधली ,मगर है हसरत यही ,
हुस्न हूरों का हम भरसक  देखलें
आरजू ये मन की बढ़ती जा रही ,
ये भी ले ले ,वो भी ,कुछ छोड़े नहीं ,
स्वाद के मारे है हरदम चाहते ,
सभी अच्छी चीजों को चख देखलें
पेड़ ,पौधे ,पहाड़ नदियां ,वादियां ,
बड़ी तबियत से रचे भगवान ने ,
बहुत ही है खूबसूरत ये  जहाँ ,
सभी को हम फेंक नज़रें देखलें
दुखी ,बेबस ,ग़म भरा संसार है ,
जिंदगी में कितनो की अन्धकार है ,
जगमगा रोशन करें हर जिंदगी ,
प्यार का दीपक जला कर देखलें
सब में बांटे प्यार ,करके दोस्ती ,
जींतलें दिल सबका सदव्यवहार से ,
सभी पर हम छाप अपनी छोड़ दें ,
सभी को अपना बना कर देखलें
हम कभी भी अहम् में डूबे नहीं ,
सादगी से जियें ,हँसते खेलते ,
दिल किसीका कभी भी तोड़े नहीं,
 सभी को दिल से लगा  कर देखलें

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।