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गुरुवार, 17 अक्टूबर 2019

करवा चौथ पर -पत्नी जी के प्रति
मद भरा मृदु गीत हो तुम,सुहाना संगीत हो तुम
प्रियतमे तुम प्रीत मेरी और जीवन गीत हो तुम 
बंधा जब बंधन सुहाना ,लिए मुझ संग सात फेरे 
वचन था सुख ,दुःख सभी में  ,रहोगी तुम साथ मेरे 
पर समझ में नहीं आता ,जमाने की रीत क्या है 
मै सलामत रहूँ ,तुमने ,आज दिन भर व्रत रखा है 
खूब मै ,खाऊँ पियूं और दिवस भर निर्जल रहो तुम 
कुछ न  खाओ ,इसलिए कि  ,उम्र मेरी रहे अक्षुण 
तुम्हारे इस कठिन व्रत से ,कौन सुख मुझको मिलेगा 
कमल मुख कुम्हला गया तो ,मुझे क्या अच्छा लगेगा 
पारिवारिक रीत ,रस्मे , मगर पड़ती  है  निभानी 
रचा मेहंदी ,सज संवर के ,रूप की तुम बनी रानी 
बड़ा मनभावन ,सुहाना ,रूप धर ,मुझको रिझाती 
शिथिल तन,दीवार व्रत की ,मगर है मुझको सताती 
प्रेम की लौ लगी मन में ,समर्पण , चाहत बहुत है 
एक व्रत जो ले रखा है ,बस वही पतिव्रत  बहुत है 
चन्द्र का कब उदय होगा ,चन्द्रमुखी तुम खड़ी उत्सुक 
व्रत नहीं क्यों पूर्ण करती ,आईने में देख निज  मुख

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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