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रविवार, 11 अगस्त 2019

अतिवृष्टि -अनावृष्टि

अतिवृष्टि भी नहीं चाहिए अनावृष्टि भी नहीं चाहिए

इतनी जगह हृदय में रखना ,जहाँ ठीक से समा सकूं मैं
इतना प्यार मुझे बस देना ,जिसे ठीक से पचा सकूं मैं
न तो प्रेम की बाढ़ चाहिये ,हेयदृष्टि भी नहीं  चाहिए
अतिवृष्टि  भी नहीं चाहिए ,अनावृष्टि भी नहीं चाहिए

ना चाहूँ दुर्लभ हो दर्शन ,ना  बस चुंबन के बौछारें
सावन के रिमझिम के जैसी ,रहे बरसती प्रेम फुहारें
अस्त व्यस्त हो जीवन का क्रम ,ऐसी सृष्टि नहीं चाहिए
अतिवृष्टि भी नहीं चाहिए ,अनावृष्टि भी नहीं चाहिए

मैं चाहूँ बस इतना बरसो ,प्यास बुझे ,तृप्ति मिल जाए
प्रेम नीर में मुझे भिगो दे ,ऐसी कृपा दृष्टि  मिल जाए
भूल जाऊं दुनिया की  सुदबुध ,ऐसी मस्ती नहीं चाहिए
अतिवृष्टि भी नहीं चाहिए ,अनावृष्टि भी नहीं चाहिए

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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