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बुधवार, 31 जुलाई 2019

 दीपक अभिनन्दन

जो जल कर भी जगमग करता ,जन जीवन के आंगन को
भू के ऐसे एक दीप  पर ,सौ सौ चाँद निछावर है

थका बटोही ठहरे ,उसको चैन मिले
रात हुई ,चकवा चकवी के नैन मिले
बया घोसले में बच्चों के साथ रहे
जहाँ हमेशा सरगम की बरसात रहे
कलरव गूंजे,गए विहंग भी नहीं थके
एक डाल पर ,काग कोकिला बैठ सके
जो पत्थर के उत्तर में भी ,फल दे मीठे रसवाले ,
भू का ऐसा एक वृक्ष ,सौ कल्पतरु से बढ़ कर है
भू के ऐसे एक दीप पर सौ सौ चाँद निछावर है

माना नभ में रोज दिवाली होती है
पर निर्धन की कुटिया काली होती है
जिसके मन में घोर अँधेरा छाया है
वहीँ प्रेम का दीपक भी मुस्काया है  
कड़वा रहता तेल ,कांति पर देता है
घुट घुट जलता हुआ कांति पर देता है
जो तूफानों को सह कर भी ,मुस्काता जलता जाता ,
एक किरण ऐसे दीपक की ,रवि रश्मि से सुन्दर है
भू के ऐसे एक दीप पर ,सौ सौ चाँद  निछावर है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

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