पृष्ठ

बुधवार, 26 जून 2019

आईने के पीछेवाला शख्स

मन  विदीर्ण
तन जीर्ण शीर्ण
आईने के पीछे वो कौन शख्स खड़ा है
उम्र में लगता ,मुझसे बहुत बड़ा है
 रह रह कर
पीड़ाये सह सह कर
उसकी  आँखें  पथरा  गयी है
चेहरे पर उदासी छा गयी है
मायूसियों ने उसे  घेर लिया है
खुशियों ने मुंह फेर लिया है
देखो चेहरा कैसा मुरझाया पड़ा है
आईने के पीछे वो कौन शख्स खड़ा है
क्या वो मैं हूँ या मेरा अक्स है
नहीं नहीं ,वो मैं नहीं हो सकता ,
वो तो कोई दूसरा ही शख्स है
मैं तो हँसता हूँ ,गाता हूँ
हरदम मुस्काता हूँ
चौकन्ना और चुस्त हूँ
एकदम दुरुस्त हूँ
मेरे मन में सबके लिए प्यार बसा है
मुझमे जीने की लालसा है
उदासियाँ मुझसे कोसों दूर है
मेरी जिंदादिली मशहूर है
उम्र कितनी भी हो जाय ,
मैं खुशियां खो नहीं सकता
इसके जैसा मेरा हाल  हो नहीं सकता
इस पर  तो मनहूसियत का रंग चढ़ा है
आईने के पीछे ,वो कौन शख्स खड़ा है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' ,

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।