परिवर्तन
पतझड़ की ऋतु में पत्ते भी ,अपना रंग बदल लेते है
ज्यादा पक जाने पर फल भी ,अपनी गंध बदल लेते है
प्रखर सूर्य ,पीला पड़ता जब दिन ढलता ,होता अँधियारा
साथ सदा जो रहता साया ,छोड़ा करता संग तुम्हारा
मात पिता बूढ़े होते तब शिथिल बदन लाचार बदलता
लेकिन अपने बच्चों के प्रति ,तनिक न उनका प्यार बदलता
घोटू
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।