पृष्ठ

सोमवार, 28 जनवरी 2019

तिल 

ये मनचले तिल 
होते है बड़े कातिल
 यहाँ,वहां ,
जहां मन चाहा ,बैठ जाते है 
कभी गालों पर ,
कभी होठों पर ,
उभर कर ,इतराते हुए ,ऐंठ जाते है 
इन तिलों में तेल नहीं होता है ,
फिर भी ये ललनाओं की लुनाई बढ़ा देते है 
भले ही ये दिखने में छोटे और काले होते है ,
पर सोने पे सुहागा बन कर ,
हुस्न पर चार चाँद चढ़ा देते है 
ये पिछले जन्म के आशिक़ों की ,
अधूरी तमन्नाओं  के दिलजले निशान है  
जो माशूकाओं के जिस्म की ,
मन चाही जगहों पर ,हो जाते विराजमान है
कोई चुंबन का प्यासा प्रेमी ,
अगले जन्म में प्रेमिका के होठों पर ,
तिल बन कर उभरता है 
कोई रूप का दीवाना ,
प्रेमिका के गालों से चिपट ,
ब्यूटीस्पॉट बन कर सजता है 
ये   तिल ,माचिस की तीली की तरह ,
जरा सा घिस दो ,ऐसी लपट देते  है 
कि दीवानो के दिल को भस्म कर देते  है 
तीली हो या तिल ,
दोनों माहिर होते है जलाने में 
पर असल में ,
तिल  काम आते है खाने में 
गजक रेवड़ी आदि के रूप में,
 बड़े प्रेम से खाये जाते है   
और काले तिल तो पूजन,हवन 
और अन्य कर्मकांड में काम में लाये जाते है 
ये वो तिल है जिनमे तेल होता है 
वरना जिस्म पर उगे तिलों का तो ,
बस दिल जलाने का खेल होता है 
तो जाइये 
सर्दी में किसी के जिस्म पर ,
तिलों को देख कर ,
सर्द  आहें न भरिये ,
तिल की गजक रेवड़ी खाइये 
और मुस्कराइये  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।