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शुक्रवार, 9 नवंबर 2018

       ग़ज़ल

जो कमीने है,कमीने ही रहेंगे 
दूसरों का चैन ,छीने ही रहेंगे 
कुढ़ते ,औरों की ख़ुशी जो देख उनको,
जलन से आते पसीने ही रहेंगे 
कोई पत्थर समझ कर के फेंक भी दे,
पर नगीने तो नगीने ही रहेंगे 
 आस्था है मन में तो ,काशी है काशी ,
और मदीने तो मदीने ही रहेंगे 
उनमे जब तक ,कुछ कशिश,कुछ बात है ,
हुस्नवाले लगते सीने ही रहेंगे 
 अब तो भँवरे ,तितलियों में ठन गयी है,
कौन रस फूलों का पीने ही रहेंगे 
जितना भी ले सकते हो ले लो मज़ा ,
आम मीठे,थोड़े महीने ही रहेंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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