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सोमवार, 20 अगस्त 2018

बस इतना प्यार मुझे देना 

इतना भी प्यार न चाहूं मैं ,जिसको न सकूं मैं रख  संभाल 
इतना न उपेक्षित भी करना ,कि देना निज मन से निकाल 
मेरे तो लिए यही बस है ,कि  डालो  तुम मुझ पर प्रेमदृष्टी 
ना  तो मैं चाहूँ  अतिवृष्टी  ,ना  मुझे चाहिए  अनावृष्टी 
बस प्रेम भरी रिमझिम बारिश ,सिंचित मेरा तनमन करदे 
बस इतना प्यार मुझे देना  जो रससिक्त जीवन कर दे 

ना प्यार चाहिये उदधि सा विस्तृत,उसमे  है  खारापन 
जिसमे हो ज्वार  कभी भाटा,घटता बढ़ता लहरों का मन  
जो चाँद देख कर घटे बढे ,उठ उठ कर लौट जाए लहरे 
नदियों के जल का मीठापन ,उससे मिलने पर ना ठहरे 
ना प्यार कूप जैसा सीमित,ना हो विशाल वह सागर सा 
मीठाजल,सीमित प्रेमपाश ,मैं चाहूँ प्यार सरोवर सा 

ना सीमित नदी सा तटों बीच  ,ना कभी बाढ़ बन कर उमड़े 
ना सूख बहे एक धारा सा  , कूलों  से इतना  जा बिछड़े 
मैं चाहूँ सरस सलिल सरिता ,कलकल करके बहती जाये 
जिसमे मेरी जीवन नैया ,मंथर गति  चलती  मुस्काये  
यह मोड़ उमर का ऐसा है ,तुम पस्त और मैं भी हूँ थका
बस एक चुंबन ही प्यार भरा ,निशदिन तुम देना मुझे चखा  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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