पृष्ठ

शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

बारिश की घटायें -कालेज की छाटाएँ 

देखो कितनी छायी घटाएं भरी भरी है 
चंचल है ये ,एक जगह पर कब ठहरी है 
कई बदलियां ,बरसा करती ,कभी नहीं है 
और लड़कियां भी तो पटती ,सभी नहीं है 
कोई बदली घुमड़ घुमड़ कर गरजा करती 
तो कोई बिजली बन कर के कड़का करती 
कोई बदली ,बरसा करती ,रिमझिम रिमझिम 
कोई मूसलाधार लुटाती अपना यौवन 
कोई की इच्छाएं ,अब तक जगी नहीं है 
और लड़कियां भी तो पटती सभी नहीं है 
कोई है बिंदास ,कोई है सहमी सहमी 
कोई रहे उदास ,किसी में गहमा गहमी 
कोई आती ,जल बरसाती ,गुम  हो जाती
कोई घुमड़ घुमड़ कर मन में आस जगाती 
कोई उच्श्रंखल है ,रहती दबी  नहीं है 
और लड़कियां भी तो पटती सभी नहीं है 

मदनमोहन बहती 'घोटू ' 
 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।