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मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

स्थानम प्रधानम 

नारी  सर की शोभा ,उसके काले कुंतल 
बिखर  गए तो  लगता जैसे छाये  बादल 
और बंधे  तो चेहरा  जैसे  चाँद चमकता 
लहराते तो सहलाने को  मन है  करता 
बहुत सर चढ़े है ,सर पर चढ़ है इतराते 
छोड़ा सर का साथ ,नज़र  कचरे में आते 
ये ही बाल ,सर छोड़ ,गिरे यदि अनजाने में 
और मिल जाए,दाल में, सब्जी या  खाने में 
केश धारिणी को कितनी  सुननी  पड़ती है 
मचती घर में कलह ,बात इतनी बढ़ती  है 
ऑफिस से जब पति देवता ,घर पर आते 
उनके कपड़ों  पर पत्नी को  बाल  दिखाते
देते खोल ,पोल पति की ,ये चुगलखोर बन 
मियां और बीबी  में  ,करवा देते  अनबन  
इनकी शोभा तब तक,जब तक है ये सर पर 
है स्थान प्रधान, जहां ये रहे संवर  कर 
सर से अगर गिर गए तो बन जाते  कूड़ा 
जब  ये  बदले  रंग ,आदमी होता  बूढा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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