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सोमवार, 6 नवंबर 2017

नींद क्यों नहीं आती 

कभी चिंता पढाई की ,थी जो नींदें उड़ाती थी 
फंसे जब प्यार चक्कर में ,हमे ना नींद आती थी 
हुई शादी तो बीबीजी,हमें  अक्सर  जगाती थी 
करा बिजनेस तो चिंतायें ,हमे रातों सताती थी 
फ़िक्र बच्चो की शादी की,कभी परिवार का झंझट 
रात भर सो न पाते बस ,बदलते रहते हम करवट 
किन्तु अब इस बुढ़ापे में,नहीं जब कोई चिंतायें 
मगर फिर भी ,न जाने क्यों ,मुई ये नींद न आये 
न लेना कुछ भी ऊधो से ,न देना कुछ भी माधो का 
ठीक से सो नहीं पाते ,चैन गायब है रातों का 
जरा सी होती है आहट ,उचट ये नींद जाती है 
बदलते रहते हम करवट,बड़ा हमको सताती है 
एक दिन मिल गयी निंदिया ,तो हमने पूछा उससे यों 
बुढ़ापे में ,हमारे साथ,करती बदसलूकी क्यों 
लाख कोशिश हम करते ,बुलाते ,तुम न आती हो 
बड़ी हो बेरहम ,संगदिल,मेरे दिल को दुखाती हो
कहा ये निंदिया ने हंस कर,जवां थे तुम ,मैं आती थी 
भगा देते थे तुम मुझको,मैं यूं ही लौट जाती थी 
नहीं तब मेरी जरूरत थी ,तो था व्यवहार भी बदला 
है अब जरूरत ,मैं ना आकर ,ले रही तुमसे हूँ बदला 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 

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