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शनिवार, 14 अक्टूबर 2017

दिवाली मन गयी 
१ 
कल गया घूमने को मैं तो बाज़ार था 
कोना कोना वहां लगता गुलजार था 
हर तरफ रौशनी ,जगमगाहट दिखी 
नाज़नीनों के मुख,मुस्कराहट दिखी 
चूड़ियां ,रंगबिरंगी ,खनकती  दिखी 
कोई बरफी ,जलेबी,इमरती   दिखी 
फूलझड़ियां दिखी और पटाखे दिखे 
सब ही त्योंहार ,खुशियां,मनाते दिखे 
खुशबुओं के महकते नज़ारे  दिखे 
आँखों आँखों में होते इशारे   दिखे 
कोई हमको मिली,और बात बन गयी 
यार,अपनी तो जैसे दिवाली मन गयी 
२ 
कल गया पार्क में यार मैं घूमने 
देख करके नज़ारा, लगा झूमने 
जर्रा जर्रा महक से सरोबार था 
यूं लगा ,खुशबूओं का वो बाज़ार था
 थे खिले फूल और कलियाँ भी कई
रंगबिरंगी दिखी ,तितलियाँ भी कई 
कहीं चम्पा ,कहीं पर चमेली दिखी 
बेल जूही की ,झाड़ी पर फैली दिखी 
थे कहीं पर गुलाबों के गुच्छे खिले 
और भ्रमर उनका रसपान करते मिले 
एक गुलाबी कली ,बस मेरे मन गयी 
यार अपनी तो जैसे दिवाली मन गयी 
३ 
 मूड छुट्टी का था,बैठ आराम से 
देखता था मैं टी वी ,बड़े ध्यान से 
आयी आवाज बीबी की,'सुनिए जरा 
कुछ भी लाये ना,सूना रहा दशहरा 
व्रत रखा चौथ का,दिन भर भूखी रही 
तुम जियो सौ बरस,कामना थी यही 
और बदले में तुमने मुझे क्या दिया 
घर की करने सफाई में उलझा दिया 
आज तेरस है धन की ,मुहूरत भी है 
सेट के सोने की,मुझको जरुरत भी है 
अब न छोडूंगी ,जिद पे थी वो ठन गयी 
यार अपनी तो ऐसे दिवाली मन गयी 

घोटू  



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