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मंगलवार, 2 मई 2017

माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

अब तक नहीं आयी 
कहां तू लुकाई
भूख ने पेट में 
हलचल मचाई
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

गयी जिस ओर 
निगाह उस ओर
घर में तो जैसे 
सन्नाटे का शोर
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

ये हरे भरे पत्ते 
बैरी हैं लगते
कहते हैं मां गई 
तेरी कलकत्ते
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

जल्दी से आओ 
दाना ले आओ
इन सबके मुंह पे 
ताला लगाओ
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

अब हम न मानेंगे
उड़ना भी जानेंगे
तेरे पीछे-पीछे हम
आसमान छानेंगे
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

- विशाल चर्चित

2 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "नर हो न निराश करो मन को ... “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. आदरणीय चर्चित जी "माँ" शब्द का सार्थक वर्णन ,आभार। "एकलव्य"

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