फिर भी जल बिच मीन पियासी
पाने को मैं प्यार तुम्हारा ,कितने दिन से था अभिलाषी
मुझे मिला उपहार प्यार का,कहने को है बात जरा सी
दिन भर चैन नहीं मिलता है ,और रात को नींद न आती
ऐसी तुमसे प्रीत लगाई, हुई मुसीबत अच्छी खासी
दिल के बदले दिल देने की ,गयी न तुमसे रीत निभाई ,
मैंने तुम्हे दिया था चुम्बन, तुमने मुझको दे दी खांसी
देखी आँखे लाल तुम्हारी ,समझा छाये गुलाबी डोरे ,
ऐसी तुमसे आँख मिलाई ,'आई फ्लू' में आँखे फांसी
मैंने जबसे ऊँगली पकड़ी ,तुम ऊँगली पर नचा रही हो,
मेरी टांग खींचती रहती ,कह खुद को चरणों की दासी
ऐसे तुमसे दिल उलझाया ,बस उलझन ही रही उमर भर ,
मैंने इतने पापड़ बेले ,फिर भी जल बिच मीन पियासी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।