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मंगलवार, 14 मार्च 2017

होली - एक अनुभव 
                        १  
न जाने कौन सी भाभी,न जाने कौन से भैया 
छिपा कर अपनी बीबी को ,थे रखते जौन से भैया 
पराये जलवों का जुमला  ,गए सब भूल होली में ,
हम मलते गाल भाभी के ,खड़े थे मौन से  भैया 
                            २ 

हुआ होली के दिन पूरा ,हमारा ख्वाब  बरसों का  
मली गुलाल गालों पर ,नहीं उनने  हमें  रोका 
इधर हम उनसे रंग खेलें,उधर पतिदेवता उनके,
हमारे माल पर थे साफ़ करते हाथ, पा  मौका 
                            ३ 
मुलायम ,स्वाद खोये सा,भरा मिठास है मन में 
श्वेत मैदे सा और खस्ता, गुथा  है रूप,यौवन में 
पगा है प्यार के रस में,बड़ी प्यारी सी है लज्जत,
तुम्हारे जैसा ही तो था,खिलाया गुझिया जो तुमने 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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