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रविवार, 22 जनवरी 2017

बूढा आशिक़

बूढा आशिक़ लोग कहते है मुझे ,
क्या बुढापे में न होती आशिक़ी
कुलबुलाता अब भी कीड़ा इश्क़ का ,
जवानी की उम्र ,जब कि  जा चुकी
क्या जवानों ने ही है लेकर रखा ,
आशिक़ी का ठेका ,बूढ़े कम नहीं
बूढ़े सीने में भी है दिल धड़कता,
बूढ़े तन में ,होता है क्या दम नहीं
दिल तो दिल है,बूढा हो या हो जवां ,
जाने किस पर,क्या पता,आजाय कब
लोग कहते ,छोडो चक्कर इश्क़ का ,
इस उमर में,राम का लो ,नाम  अब
राम को  भी  जो करेंगे याद  हम,
इश्क़ होगा वो भी सच्चा राम से
उम्र कुछ भी हो ,न लेकिन छूटती ,
इश्क़ की आदत  कभी ,इंसान से

घोटू 

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