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रविवार, 27 मार्च 2016

होलिका दहन

  होलिका दहन

एक हसीना थी
बड़ी नाजनीना थी
जलवे दिखाती थी
सबको जलाती थी
करती थी ठिठोली
नाम था  होली
उसको था वरदान
कोई भी इंसान
उसका संग पायेगा
बेचारा जल जाएगा
और एक प्रह्लाद था
एकदम फौलाद था
ग्यानी और गुणी था
धुन का धुनी  था
होली के मन भाया
गोदी में बैठाया
उसको था जलाना
पर वो था दीवाना
नहीं किसी से कम था
फौलादी  जिसम था
बड़ा ही था बली
जलाने उसे चली
 कोशिश बेकार गई
बेचारी हार गयी   
मात यहाँ पर खायी
उसे जला ना पायी
खुद ही पिघल गयी
होलिका जल गई

मदन मोहन बाहेती'घोटू;'

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