पृष्ठ

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

संगठन की शक्ति

           संगठन की शक्ति

कई सींकें बंध गई तो एक झाड़ू बन गई ,
       जसने कचरा बुहारा और साफ़ की सब गंदगी
और जब बिखरी वो सींकें,ऐसी हालत हो गयी,
       बन के कचरा ,झेलनी उनको पडी शर्मिंदगी
ठेले में अंगूर के गुच्छे सजे थे ,बिक रहे ,
        सौ रुपय्ये के किलो थे  ,देखा एक दिन हाट में
वही ठेला बेचता था ,टूटे कुछ अंगूर भी ,
        एक किलो वो बिक रहे थे,सिर्फ रूपये  साठ  में
मैंने ठेलेवाले से पूछा  ये भी क्या बात है
        एक से अंगूर दाने ,दाम में  क्यों फर्क है
ठेलेवाले ने कहा ,मंहगे जो  गुच्छे में बंधे ,
       टूट कर जो बिखरते है , उनका बेडा गर्क  है
कई धागे सूत के मिलकर एक रस्सी बन गई ,
      वजन भारी उठा सकती थी,बड़ी मजबूत थी
वरना कोई भी पकड़ कर तोड़ सकता था उसे ,
    जब तलक वो थी अकेली , एक धागा सूत थी
इसलिए क्या संगठन में शक्ति है ये देखलो ,
    साथ में सब रहो बंध कर,और मिलजुल कर रहो
अकेला कोई चना ,ना फोड़ सकता भाड़ है,
    एक थे हम ,और रहेंगे एक ही,ऐसा  कहो    

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।