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मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

काटा काटी

         काटा काटी

मार काट से क्यों है ये  दुनिया  घबराती
जबकि कितनी काट ,काम में काफी आती
नाइ काटे बाल ,आदमी संवर जाएगा
दरजी काटे वस्त्र ,नया फैशन आएगा
माली काटे फूल पत्तियां,निखरे गार्डन
नेता काटे रिबिन, उसे कहते  उदघाटन
जेब किसी की कटती है वो लुट जाता है
रोज रोज किट किट से झगड़ा बढ़ जाता है
मंत्री जी वो जबसे बने ,कट रही चांदी
धन दौलत और शोहरत होती पद की बांदी
ओहदे वाले अफसर  ,काटे रोज  मलाई
कटता सदा  गरीब ,मगर  है यही सचाई
खरबूजे पर चाकू, चाकू पर खरबूजा
गिरे कोई भी,कटता  बेचारा खरबूजा
काटा काटी ने है बिगड़ा काम सुधारा
जब ना खुलती गाँठ,काटना पड़ता नाडा
नींद न आती जब रातों को काटे मच्छर
कोई ज्यादा उड़े ,काट दो तुम उसके पर
दे दो ज्यादा ढील,पतंगे कट जाती है
थोड़े बनो दबंग, मुसीबत  हट जाती है 
कुछ होते इतने जहरीले ,क्या बतलाये
जिनका काटा ,पानी तक भी मांग न पाये
मुश्किल के दिन,मुश्किल से ही कट पाते है
अपने से मत कटो, काम वो ही आते  है
कभी किसी की बात न काटो,चिढ जाएगा
बिना बात के झगड़ा करके  भिड़   जाएगा
अपना पेट काट कर ,जिन बच्चो को पाला
बुढ़ापे में ,घर से उनने , हमें  निकाला 
यूं ही किट किट में मत उलझाओ निज मन
जितना जीवन बचा ,काट दो,कर हरिस्मरण

घोटू

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