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मंगलवार, 26 जनवरी 2016

माँ की पीड़ा

                      माँ की पीड़ा              

बेटे ,जब तू रहा कोख में ,बहुत सताया करता था
मुझको अच्छा लगता था जब लात चलाया करता था
और बाद में ,लेट पालने में,जब भरता  किलकारी
जैसे साईकिल चला रहा ,लगती थी ये हरकत प्यारी
या फिर मेरी गोदी में चढ़,जब जिद्दी पर आता था
बहुत मचलता था ,रह रह कर,मुझ पर लात चलाता था
सोते सोते ,लात चलाने की, भी  थी ,आदत तेरी
बार बार तू ,हटा रजाई , कर देता  आफत   मेरी
तेरी बाल सुलभ क्रीड़ाएं, बहुत मोहती थी जो मन
नहीं पता था ,एक दिन ऐसे ,उभरेगी वो आफत बन
कभी न सोचा ,लात मारना ,ऐसा   रंग  दिखायेगा
लात मार कर ,अपने घर से ,एक दिन मुझे भगायेगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'



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