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शनिवार, 5 दिसंबर 2015

मैं -पैसा हूँ

          मैं -पैसा हूँ

मैं निर्जीव ,मगर चलता हूँ
गिरता कभी ,कभी चढ़ता हूँ
पंख नहीं, पर लोग  उड़ाते
तरल नहीं ,पर लोग बहाते
दुनिया कहती मैं हूँ  चंचल
साथ बदलता रहता पल पल
छप्पर फाड़ कभी आ जाता
हर कोई  मेरे गुण  जाता
मैं सफ़ेद हूँ, मैं हूँ काला
जिसे मिलूं ,होता मतवाला
जब भी मैं हाथों में आता
दुनिया के सब रंग दिखाता
मैं  मादक, मदिरा से बढ़कर
लोग  बहकते ,मुझको,पाकर
अच्छे लोग बिगड़ जाते है  
बिगड़े लोग संवर जाते  है
मुझको पाने सब आतुर है
मेरी खनखन बड़ी मधुर है
सभी तरसते मेरे स्वर को 
नचा रहा  मैं दुनिया भर को
पहले होता  स्वर्ण ,रजत का
पर अब हूँ कागज का,हल्का
मैं तो हूँ भूखों  की  रोटी
वस्रहीन के लिए  लंगोटी
मैं देता घर, चार दीवारी
रहन सहन की सुविधा सारी
पति पत्नी का प्यार मुझी से
 आभूषण ,श्रृंगार मुझी से
मुझसे मिलते नए नाम है
परसु,परस्या ,परसराम है 
दान ,धर्म करवाता मैं  ही
पाप कर्म ,करवाता मैं   ही
मैं तीरथ  और धाम कराता
जेलों में चक्की पिसवाता
मेरे कितने, भिन्न  रूप है 
अफसर कहते ,पत्र पुष्प है
चंदा  कहते है  नेताजी
चपरासी ,चाय पी राजी
मंदिर में, मैं बनू  चढ़ावा 
रेल बसों में बनू किराया
मुख विहीन ,मैं ,मगर बोलता
पा सबका  ,ईमान डोलता
कोई किस्मत का खेल समझता
कोई हाथ का मैल  समझता
मुझसे सारे ऐश्वर्य है 
मान प्रतिष्ठा और गर्व है
ये मत पूछो ,मैं कैसा हूँ
मै जैसा हूँ ,बस वैसा हूँ
हर युग में बस एक जैसा हूँ
हाँ,जनाब ,मैं ही पैसा हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

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